About biography :
आज के अगर बात की जाए तो, एयरटेल को भारत के सबसे सफल उद्योगों में से एक माना जाता है, जिसके नेटवर्क का इस्तेमाल भारत के ज्यादातर लोग करते है। जिससे कि यहां भारत की सबसे बड़ी टलीकॉम कंपनी बन पाई है। ओर उसके संस्थापक सुनील भारती मित्तल भारत के 100 सबसे अमीर और दिग्गज उद्योगपतियों की सूची में सातवें क्रमांक पर आ गए है। उन्हें "भारती एयरटेल" टेलीकॉम कंपनी के निर्माता और अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है।
एक सामान्य जन्म लेने के बावजूद आज उनकी कुल संपत्ति $27.3 billion डॉलर, यानी भारतीय रुपए में 2.55 लाख करोड रुपए जितनी है। उन्होंने एक सामान्य उद्योगपति से लेकर भारत के "टेलीकॉम किंग" बनने तक का सफर तय किया है। और यह सफर बहुत ही ज्यादा मजेदार होने के साथ ही, कई मोड़ पर ऐसी महत्वपूर्ण जीवन की शिक्षा देता है, जो एक सफल उद्योग बनने के लिए महत्वपूर्ण है, जिसे जानने के लिए आगे पढ़िए.......
शुरुआती जीवन और व्यवसाय
उनका जन्म साल 1957 में पंजाब के लुधियाना में हुआ था। उनके पिता श्री सतपाल मित्तल कांग्रेस के एक जाने-माने नेता और राज्यसभा के सांसद थे। इस बावजूद भी उन्हें उनके जीवन में इतने बड़े मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा।
वह अपने पिता की तरह राजनेता ना बनते हुए, एक सफल उद्योजक बनाना चाहते थे। उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी से पूरी की, और बादमें उन्होंने 18 साल की उम्र का होते ही अपने पिता से ₹20000 का कर्जा लेकर साइकिल पार्ट बेचने का व्यवसाय शुरू किया। क्योंकि वह इस व्यवसाय में नए थे, जिस कारण उन्हें इस व्यवसाय की ज्यादा जानकारी और समझ नहीं थी। जिस कारण शुरुआती दिनों में उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।
वह धीरे-धीरे इस व्यवसाय को समझने लगे और आगे उन्होंने पाया कि इस व्यवसाय में ज्यादा मुनाफा नहीं है। जिस कारण उन्होंने इसे बंद कर दिया, और दूसरे कई व्यवसाय आजमाए, जिसमें उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिले जिस कारण वह निराश होने लगे।
एक अच्छा व्यवसाय:
यह बात साल 1980 की है, जब एक बहुत ही बड़ा मौका उनके हाथ में आया। दरअसल "सुजुकी Suzuki" कंपनी अपना पोर्टेबल जनरेटर भारत में बेचने के लिए किसी डीलर की तलाश में थी। इसी खास मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने सुजुकी के साथ साझेदारी करके, सुजुकी के पोर्टेबल जनरेटर भारत में आयात करके ठेले वाले सब्जी वाले और अन्य लोगों को बेचने लगे।
लेकिन उन्हें यह बात जल्दी समझ में आ गई कि, इस जनरेटर की ज्यादा जरूरत उन लोकल दुकानदार और छोटे दवाखानों को है जिन्हें बार-बार लाइट जाने की समस्या का सामना करना पड़ता है। आगे वह इन जनरेट को दुकानों और दवाखाना में भी बेचने लगे, जिस कारण उनके जनरेटर की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई। जिससे कि सुनील बहुतही ज्यादा मुनाफा कमाते है।
लेकिन अब आगे उन्हें बहुत ही बड़ा झटका लगने जा रहा था। क्योंकि भारत सरकार द्वारा देश में ही जनरेटर का निर्माण बढ़ाने के लिए, और विदेशी मुद्रा को रोकने के लिए, जनरेटर के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। जो कि सुनील के लिए किसी सदमें से कम नहीं था। जिस कारण उनका पूरा कारोबार बंद हो गया। वह कई दिनों तक कुछ ना करते हुए बेरोजगार रहे, जो कि उन्हें पसंद नहीं आ रहा था।
एक सुनहरा कदम:
वह नया व्यवसाय करना चाहते थे, लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे की कौन सा व्यवसाय किया जए । जिसके लिए वह विदेश जाने के बारेमे सोचते है, और इस तरह वह ताइवान चले जाते हे।
वहां पर उन्होंने देखा कि, जहां भारत में लोग रोटरी डायल टेलीफोन का इस्तेमाल कर रहे थे। जिसमें की नंबर घुमा घुमा कर डायल कर जाते थे। जिस कारण या टेलीफोन बार-बार खराब हो जाते थे। वहीं ताइवान में लोग पुश डायल टेलीफोन का इस्तेमाल कर रहे थे। जिसमें की बटन दबाकर नंबर डायल किए जाते थे। जो की इस्तेमाल में बहुत ही ज्यादा आसान था, और खराब भी कमी हुआ करते थे।
जिस कारण उन्हें इसमें एक अच्छा व्यवसाय का अवसर दिखाई पड़ता हैं। यह बात 1984 की है, जब उन्होंने एक सुनहरा कदम उठाया। उन्होंने किंगटल नामक कंपनी के साथ साझेदारी करके, इन टेलीफोन के पुर्जों को भारत में आयात करके, उन पुर्जों को एकत्रित करके बेचने लगे।
उनके यहां विचार बहुत ही ज्यादा सफल रहा। उनके टेलीफोन डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ने लगी, और एक समय तो ऐसा भी है कि उन्हें डिमांड को देखते हुए, खुद ही टेलीफोन निर्माण करने का निर्णय लेते हैं।
खुद से टेलीफोन का निर्माण करने लिए उन्होंने सीमेन नमक जर्मन कंपनी के साथ जुड़कर, "भारतीय टेलीकॉम लिमिटेड (BTL)" की स्थापना की, और भारत में ही टेलीफोन बनाकर बेचने लगे। यह व्यवसाय भी तेजी के साथ बढ़ने लगा, आगे साल 1990 आते आती है वह फ्लेक्स मशीन और अन्य प्रोडक्ट बनाकर, "बिटेल" नाम से बचने लगे जो कि उसे समय की जानी-मानी कंपनी मानी जाने लग गई। ओर इसे बहुतही ज्यादा लोकप्रियता मिलती है।
दूरसंचार व्यवसाय (Telecom business) :
यह बात साल 1992 की है जब सुनील अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने गए थे, लेकिन उसी समय भारत सरकार दूरसंचार व्यवसाय में कई विदेशी कंपनियों का आमंत्रित कर रही थी। जैसेही यह बात उन्हें पता चलती है। तो वह भी इस व्यवसाय का लाइसेंस लेने के लिए तुरंत छुट्टियां छोड़कर भारत लौटते हैं और लाइसेंस लेने के लिए तैयारी करने लग जाते है।
आगे उन्हें यह बात पता चली, कि भारत सरकार सिर्फ उन्हीं कंपनियों को लाइसेंस देंगे जिन्हें इस व्यवसाय का अनुभव हो। लेकिन सुनील के पास इस व्यवसाय का अनुभव तो नहीं था। लेकिन भारत सरकार को अनुभव दिखाने के लिए, उन्होंने विवइंडी नामक प्रतिष्ठित कंपनी के साथ साझेदारी कर ली। जिस कारण साल 1994 में दूरसंचार व्यवसाय का लाइसेंस तो मिलताही है, सतही में उन्हें तकनीकी सहायताएं भी मिली मिल जाती हैं।
आगे साल 1995 में वह "भारतीय सेल्यूलर लिमिटेड (BCL)" की स्थापना की, और 1997 में दिल्ली में अपनी पहली मोबाइल सेवाएं एयरटेल के नाम से लॉन्च की, और यहां से ही एयरटेल की शुरुआत होती है।
शुरुआती दिनों में पैसों की कमी, और इस व्यवसाय की कुछ खास अनुभव न होने के कारण कई समस्या उनके सामने आई। जिसका उन्होंने डटकर सामना किया।
क्योंकि यह व्यवसाय उस वक्त नया था, जिस कारण निवेशक भी इस व्यवसाय में पैसा लगाने से डरते थे, और बैंक भी इन कंपनियों को पैसा नहीं दिया करती थी। लेकिन उन्होंने जैसे तैसे कोशिश करके निवेशकों से और बैंकों से पैसे जुटाए, और इरिक्सन और नोकिया जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ साझेदारी करके। पूरे भारत में टावर लगना शुरू किया।
आगे वह अपने नेटवर्क की क्वालिटी सुधारने लक्ष्य केंद्रित करते हे, और ग्राहकों को अच्छी क्वालिटी की सर्विस देने लगते है। जिस कारन वह पहली भारतीय टेलीकॉम कंपनी बनी, जिनके 20 लाख उपयोगकर्ता हो जाते है।
आगे वह 1990 में दक्षिण भारत में अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए उन्होंने जेड होल्डिंग और चेन्नई के स्पाईसेल कम्युनिकेशन को भी नियंत्रण में ले लेते है। जिस कारण उनका व्यवसाय दक्षिण भारत में भी बढ़ने लगता है।
सुनील व्यवसाय करने के साथ ही समाज सेवा करने में भी विश्वास रखते है। जिस कारण साल 2000 में उन्होंने भारती एयरटेल फाउंडेशन की स्थापना की। जिस के द्वारा वह जो बच्चे किसी कारण पढ़ नहीं सकते उन्हें पढ़ने में मदद करने ,के सतही कई चीज करते हैं।
संघर्ष और सफलता
वह बहुत ही तेजी के साथ आगे बढ़ने लगे थे। लेकिन मुसीबत तो तब सामने आए जब साल 2000 में भारत सरकार ने BSNL की स्थापना की। जिस करण इस व्यवसाय में प्रतियोगिता बढ़ जाती हैं।
जहां एयरटेल की पैसे की कमी की समस्या से गुजर रहा था; वही BSNL को भारत सरकार का समर्थन हासिल होने के कारण, उनके पास साधनों की और पैसों की कमी नहीं थी। जिस कारण उन्होंने अपने मोबाइल नेटवर्क उन जगहों पर भी पहुंचा। जहां तक चिट्टिया पहुंचना भी मुश्किल थी।
जहां एयरटेल के नेटवर्क पैकेज बहुत ही महंगे हुआ करते थे, वही BSNL ने बहुत ही कम कीमत में एयरटेल जैसी ही सर्विस ग्राहकों को देने लगे। जिस कारण ग्राहक एयरटेल को छोड़कर BSNL में जाने लगे, जो कि सुनील के लिए बहुत ही बड़ी समस्या बन जाती है।
लेकिन BSNL के साथ भी एक समस्या थी। क्योंकि उनके पास क्षमता से ज्यादा ग्राहक हो, गए जिस कारण उनके नेटवर्क पर बहुत ही ज्यादा तनाव आने लगता है। जिस कारण जब ग्राहक किसी व्यक्ति को कॉल करते, तो वह कॉल बीच में ही कट जाता था। और ग्राहकों को कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।
यह मौका देख उन्होंने अपने नेटवर्क में सुधार करने पर जोर दिया और आविष्कार किए। जिस कारण ग्राहक फिर से उनके पास आने लगे। उन्होंने साल 2002 में अपना IPO लॉन्च किया और अपने व्यवसाय को और भी तेजसे बढ़ने लगे। इसके लिए उन्होंने अपनी सेवाओं की कीमत 60% से घटा दी। उन्होंने अपने अच्छे नेटवर्क और बेहतरीन सर्विस के दम पर बहुत ही अच्छा कस्टमर बेस बनाने में सफल रहे। जिस कारण मार्च 2005 आते-आते वह भारत के सबसे बड़े मोबाइल ऑपरेटर बन पाए।
Foreign expansion and development
सुनील जी कि हमेशा बड़ा करने की सोच होने के कारण। अब वह अपना व्यवसाय को विदेशो में भी फैलाना चाहते थे। यह बात साल 2010 के हैं। जब उन्होंने झेन टेलीकॉम नामक अफ्रीकी कंपनी जोकी अफ्रीका के 15 देशों में मोबाइल सेवाएं दे रही थी। उसे 48 हजार करोड रुपए में खरीद कर, अपने नियंत्रण में ले लेते है। यह उनका एक सुनहरा कम था। जिससे वह अपने व्यवसाय को अफ्रीका के 15 देश में भी बढा पाए पाते है। जिसमें की वहां की बहुत कम दामों पर अफ्रीका के लोगों को अपनी सेवाएं देने लगे।
इसके बाद एयरसेल, टेलीनॉर, वोडाफोन, आइडिया टाटा ओपन अप, जैसे कई ओर भी कई टेलीकॉम सेवाएं देने वाली कंपनियां भी बाजार आई। जिस कारण प्रतियोगिता और भी ज्यादा बढ़गई। लेकिन फिर भी वह अपने स्थान पर डेटरहे।
यह बात साल 2012 की है। जब वह ने बहुत ही ज्यादा संघर्ष करके एयरटेल के द्वारा भारत में पहली 4G सेवाएं शुरू करते हैं, और यहां से एयरटेल की स्वर्णिम युग की शुरुआत होती है। एक अच्छा 4G और तेज नेटवर्क किफायती दम पर मिलने के कारण ग्राहक और भी तेजी से उनके पास आने लगते हैं। और वह बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ने लगे। साल 2015 आते-आते उन्होंने 3 करोड़ ग्राहक प्राप्त करने की सफलता प्राप्त कर ली थी। जो कि खुदने बहुत ही बड़ी बात हैं।
सबसे बड़ी मुसीबत
लेकिन उनका यह स्वर्णिम युग 4 साल तक भी नहीं टिका। क्योंकि साल 2016 में आज तक की सबसे बड़ी मुसीबत उनके सामने आनेवाली थी। जब मुकेश अंबानी जी ने जिओ (JIO) टेलीकॉम नेटवर्क को लॉन्च करते हैं। जो की इन कंपनियों के मुकाबले आधे दम पर है अपनी सेवाएं ग्राहकों को देने लगे।
जिस कारण ग्राहक बाकी कंपनियों को छोड़कर उनके पास आने। जिस करण टेलीकॉम कंपनीया अपने ग्रहकों को खोती जा रही थी। जहाँ भारत में 12 से भी ज्यादा दूरसंचार सेवाएं देनेवाली कंपनीया तो बरबाद हो गई, या तो बिक गई। अब अन्य कंपनी के साथ ही एअरटेल भी अपने अस्तित्वा की लडाई लढने लगा था। जिस दौरान उनका मुनाफा 70% से गिर जाता है, और कंपनी कार्जे में जाने लगती हैं। लेकीन सुनील अपनी कंपनी के लिए और भी ज्यादा मेहनत करते हे, और अपनी सूझबूझ के दम पर अपने कंपनी का अस्तित्व बचाने में सफल रहते हैं।
खुद को वक्त साथ ढलते हुए उन्होंने एअरटेल एक्स्ट्रीम फायबर, एअर फायबर, और सेटअप बॉक्स जैसे कई अन्य प्रोडक्ट भी लॉन्च किए। आज सुनील जी सूझबूझ और मेहनत के करण एअरटेल दुनिया के 18 से भी ज्यादा देश में अपना सेवा देना की के साथ ही, भारत की सबसे बडी मोबाइल सेवा देना वाली कंपनी हे।
उनके इन्हीं सब कदमों का नतीजा है कि आज उनकी कुल सपत्ति $27.3 billion जितनी है, जो कि उन्हें भारत का 7 वा सबसे अमीर व्यक्ति बनती हैं। यह कहानी हे सुनील भारती मित्तल जी की। धन्यवाद...
कंक्लुजन:
सुनील जी में मेहनत और लगन थी। साथ ही कुछ बड़ा करने की भूख था। जिस कारण वह इतनी बड़ी कंपनी बन पाए। जिस दौरान उन्हें बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा, और कई बड़ी कंपनियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने इस पार किया ओर इतने सफल व्यक्ती बन पाए। आज जो कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता हे, उसे एक बार तो सुनील जी कि यह कहानी पढ़नी ही चाहिए।
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