🔥 Introduction
"क्या कभी आपने सोचा है कि 1970 के दशक के भारत में, जब लोगों ने कंप्यूटर का नाम तक मुश्किल से सुना था, तब कोई इंसान ये सपना देखे कि वह पूरे देश को तकनीक से बदल देगा?"
यह कहानी है शिव नाडर की—एक साधारण गांव से निकले उस इंसान की, जिसने न सिर्फ भारत में पहला पर्सनल कंप्यूटर बनाया, बल्कि IT इंडस्ट्री को ऐसी ऊँचाइयों पर पहुँचाया कि आज उनका नाम दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों के साथ लिया जाता है।
गांव के स्कूल से इंजीनियरिंग कॉलेज तक
15 जुलाई 1945, तमिलनाडु के मुल्लईपोझी गांव में जन्मे शिव नाडर का बचपन बिल्कुल साधारण था। लेकिन साधारण माहौल में भी उनकी सोच असाधारण थी।
स्कूल के दिनों में ही वे मशीनों के कामकाज को लेकर बेहद जिज्ञासु थे। स्कूल की पढ़ाई के बाद उन्होंने कोयंबटूर के पी.एस.जी. कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।
किसे पता था कि यही डिग्री एक दिन भारत का पहला पर्सनल कंप्यूटर बनाने में काम आएगी?
पहली नौकरी, पहला सपना
यह बात साल 1967 की हे, जब उन्होंने इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद अपने करियर की शुरुआत पुणे के Cooper Engineering Ltd. कंपनि मे नौकरी करने से शुरू की। जहां पर उन्होंने कई साल काम किया, जिसके बाद वह दिल्ली के क्लॉथमल डी सी एम में नौकरी करने लगे। जो की नौकरी उसे वक्त के लिए से बहुत ही ज्यादा अच्छी मानी जाती थी।
इकदिन की बात है, जब वह अपने बॉस को कंप्यूटर पर काम करते हुए देखते हैं, और क्योंकि कंप्यूटर सभी लोगों के लिए नई चीज थी, जिसकारन उनके ऑफिस में हर तरफ इस चीज के बहुत ही ज्यादा चर्चे चल रहे थे।
कोई कह रहा था कि यहां मशीन सब की नौकरी खा लगी, तो कोई कुछ कह रहा था। पर नाडर के लिए यह डर नहीं, बल्कि रोमांच था।
उन्होंने खुद से सवाल किया—"अगर ये मशीन सब बदल सकती है, तो क्यों न हम ही इसे भारत में लाएं?"
यहीं से एक सपना जन्म ले चुका था।
HCL की शुरुआत – जोखिम से भरा कदम
वह कंप्यूटर के बारे में जानकारी जुटाना लगते हैं। वह कंप्यूटर के बहुत ही फायदे होने के साथ ही, उसके भविष्य के बारे में अनुमान लगाते हैं।
वह खुद कंप्यूटर का निर्माण करने का निर्णय लेते हैं।
वह सबसे पहले, कंप्यूटर भविष्य के लिहाज से कितनी महत्वपूर्ण वस्तु है, और इसके भविष्य में होने वाले इस्तेमाल के बारे में बड़ी आकर्षक तौर पर अपने साथियों को बताया।
उनकी इस बातों को समझते हुए उनके दोस्त भी इस चीज पर काम करने के लिए राजी हो गए और उन्होंने अपने छह साथियों के साथ अपने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
क्योंकि उस समय इतने अच्छे कंपनी में से नौकरी छोड़ देना बहुत ही बड़ी बात हुआ करती थी, जिस कारण उनके खबरें अखबारों में भी आने लगी थी। जिससे कि आप समझ सकते हैं कि उन्होंने कितना बड़ा कदम उठाया था।
छह साथियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान कंप्यूटर लिमिटेड (HCL) की नींव रखी।
लेकिन सवाल बड़ा था—पैसा कहां से आएगा? और इसी तरह साल 1936 HCL technologies की शुरुआत होती है।
20 लाख का विश्वास
यह बात साल 1977 की है। क्योंकि उन्हें पैसों की आवश्यकता थी, वह लोन लेने के लिए कई बैंकों के पास गए।
लेकिन क्योंकि उसे समय कंप्यूटर के बारे में लोगों में कई गलत फ़हमिया फैली थी। बैंकों ने कंप्यूटर प्रोजेक्ट को 'बेकार' कहकर फंड देने से मना कर दिया।
बाद मे वह उत्तर प्रदेश सरकार के पास गए। उन्हें कंप्यूटर के भविष्य के बारे में बताया।
यह सब बातें समझने के बाद, यूपी सरकार उनसे बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुई, और उन्हें निवेश के तौर पर 20 लाख रुपए दिए, जिसके बदले में शिव उन्हें अपनी कंपनी में 26% हिस्सेदारी दी।
इसके बाद वह कई और निवेशकों के पास गए। लेकिन उन्हें हमेशा यह ताना सुनना पड़ता था, क्या तुमको ही आईआईटियन हो जो हम तुम्हें इतना पैसा दे।
इस समस्या का समाधान वह वही होशियारी के साथ करते है। दरअसल वह अपनी कंपनी के सह संस्थापक अर्जुन मल्होत्रा जो कि IIT से ग्रेजुएट थे।
उनके मदद से आईआईटी खड़कपुर के डायरेक्टर से मिलते हैं,और कंप्यूटर के बारे मे बताया। और आने वाले भविष्य को देखते हुए उन्हें IIT में कंप्यूटर लैब निर्माण करने की सलाह भी दी।
इसके बाद IIT के डायरेक्टर उन्हें 100 कंप्यूटर की आर्डर दी। यह बात जानकर कई निवेशक उन्हें बहुत बड़े इन्वेस्टमेंट देने लगे। जिसके साथ उन्हें जितने पैसों की आवश्यकता थी उतने पैसे उनके पास हो गए।
शुरुआती के समय उनके पास कुछ भी नहीं था, लेकिन बहुत कुछ बनाने की क्षमता थी।
जब IBM बाहर निकला, HCL आगे बढ़ा
वह एक अच्छे ऑब्जर्वर है, वह हमेशा मार्केट, बिजनेस ओर दुनिया में चल रही चीजों पर नजर और अच्छे मौके की तलाश में रहते थे।
अब उनके पास पैसे था, लेकिन अब आवश्यकता थी ऐसे लोगों की जो कंप्यूटर बनाना जानते हो। जिसके लिए वह खोज में लग गए।
इसी दौरान देश में इमरजेंसी, स्वदेशी बचाओ आंदोलन और विदेशी कंपनियों को बाहर भगाने का दौर चल रहा था। इसके पहले ही IBM कंपनी भारत में कंप्यूटर निर्माण करने के हेतु से, भारत में फैक्ट्री के निर्माण से लेकर कई लोगों को प्रशिक्षित कर चुकी थी।
लेकिन इन सब कारणों के कारण उन्हें अपना सब कुछ छोड़कर भारत से जाना पड़ता है। जिसकारण उनके भारत में काम कर रहे सभी लोग जो कि कंप्यूटर बनाने के लिए प्रशिक्षित थे वह बेरोजगार हो चुके थे।
इस मौके को देखते हुए शिव IBM से बेरोजगार हुए कई लोग जो कि कंप्यूटर बनाना जानते थे, उन्हें अपनी कंपनी में आमंत्रित करते हैं। और वहां उनके मदद से साल 1988 में भारत का पहला और दुनिया का दूसरा कंप्यूटर पीसी बनाते हैं। जो की एक बहुत ही बड़ी बात है।
PROBLEM SOLVING
वह कंप्यूटर पीसी तो बना लेते हैं, और बेचने भी लग जाते हैं। लेकिन उन्हें बहुत ही कम बड़े ऑर्डर आया करते थे, और हमेशा छोटे-मोटे ही ऑर्डर आते थे। जो कि उनके लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या बन जाती हैं।
इसके बाद खुद वह इस समस्या का कारण ढूंढने लग जाते हैं। जब उन्हें यह पता चलता है, लोगों में कंप्यूटर के बारे में बहुत ही ज्यादा गलतफहमियां फैली हुई है।
जैसे की इसे चलाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल काम है, और इसके लिए कोई बहुत ही ज्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति चाहिए। यह बहुत ही ज्यादा महंगा है और बहुत ही ज्यादा बिजली भी खाता है, और ऐसे ही कोई और भी कई गलतफहमियां लोगों में फैली हुई थी।
जिसके बाद वह लोगों की यह गलतफहमियां दूर करने में लग जाते हैं। वह कंप्यूटर को अपने कंपनी में काम कर रहे चपरासी से चलवाते हैं, ओर यह खबर अगले दिन अखबार में देते हे। लोगों को यह कितने फायदे की चीज है यह भी बताते हैं,
ऐसे ही कई अन्य चीज करते हैं जिससे कि लोगों की गलत कमियां दूर हो सके, और अपनी सेल्स की टीम को कंप्यूटर बचने के लिए प्रशिक्षण भी देते हैं।
इसके बाद उनके कंप्यूटर की मांग बढ़ जाती है। जहां पर HCL के आने से पहले भारत में सिर्फ 100 कंप्यूटर हुआ करते थे, वही HCL भारत में शुरू होते ही दो साल में 10,000 कंप्यूटर बेच देता है।
जो कि उसे वक्त के हिसाबसे बहुतही बड़ी बात थी। इससे हमें उनके समस्या के समाधान करने की क्षमता के बारे में पता चलता है।
विदेशी विस्तार
यह बात साल 1980 की है। जब वह भारत में अपने अच्छे प्रदर्शन के बाद वह भारत के बाहर भी अपना विस्तार करना चाहते हैं। जिसके लिए वह सबसे पहले सिंगापुर जाते हैं, और फार ईस्ट कंपनी की स्थापना करते हैं।
जिससे कि वह अपने कंप्यूटर को सिंगापुर में भी बेच सके। क्योंकि उस समय भारत को किसी पिछड़े देश की तरह देखा जाता था। जिस कारण जब भी वह किसी बड़े ग्राहक के पास जाते थे, तो वह उनके कंप्यूटर लेने से यह बात करते हुए मना कर देता था कि वह अमेरिका और चीन जैसे उन्नत देशों से कंप्यूटर खरीदने हैं।
इसके बाद वह सिंगापुर में स्थित तमिल व्यापारियों के पास अपना कंप्यूटर बेचने जाते हैं, और अपने कंप्यूटर की कीमत भी कुछ कम कर देते है। जिस कारण अब सिंगापुर में भी लोग उनके कंप्यूटर में खरीदने लगते हैं,और वह पहले ही साल में तुरंत सिंगापुर से 10 लाख रुपए कमा लेते है।
सिंगापुर में अपना व्यवसाय अच्छी तरह से स्थापित करने के बाद। भारतीय मिनीकंप्यूटर अमेरिका में बेचने के विचार से, ओर अमेरिका में विस्तार के लिए वह मेकिंसी एंड कंपनी (mekinsey & company) के पास जाते हे, ओर उनसे बात करते हे।
इसके बाद यह कंपनी उन्हें यूनिक्स कंप्यूटर कंप्यूटर बनानेके लिए ऑर्डर देती हे, ओर शिव भी इसके लिए राजी हो जाते हे।
इसके बाद अमेरिका में कंप्यूटर बनाने के लिए वह सिलिकॉन वैली में फैक्ट्री का निर्माण करते हे। जिसके लिए वह ICICI बैंक से 5 करोड रूपये का लोन भी लेते हे। बहुत सारा पैसा खर्च करने के बाद वह बहुत सारे यूनिक्स कंप्यूटर बनाते है।
लेकिन इस सब के दौरान वह एक बहुतहि बड़ी गलती करते हे। दरअसल अमेरिका में जहां कंप्यूटर को 60 फ्रिक्वेंसी पॉवर सप्लाई की आवश्यक थी। वहीं HCL 50 फ्रिक्वेंसी पॉवर सप्लाई के यूनिक्स कंप्यूटर बनाते है। उनकी इस गलती के उनका एक भी कंप्यूटर बिकता नहीं है।
अब उनके करोड़ों रुपयों का नुकसान हो जाता हे। और जैसे - जैसे दिन निकलेगी रहे थे, वैसे ही उनका नुकसान भी बढ़ता चला जा रहा था। शिव इस समस्या का समाधान मिल नहीं रहा था, और उन्हें कई लोगोके ताने भी सुनने पड़ रहे थे।
इन सब कारणों के वजह से वह इतना परेशान हो जाते हैं, कि वह अपने कमरे में दो दिनों तक खाना पीना छोड़कर, सर पकड़ कर बैठे रहते हैं। दरअसल वह डिप्रेशन में चले जाते हैं।
IT hardware to IT Software company
जब दो दिन बाद वह अपने कमरे से बाहर निकलते हैं। तब अपने साथियों को कहते हैं कि हमें अमेरिका छोड़कर नहीं जाना है।
उनसे यह बात सुन उनके साथी कहते हैं कि तुम यह क्या कर रहे हो, इतना नुकसान होने के बाद हमें यहपर रुकना नहीं चाहिए।
जिसपर शिव उन्हें कहते हैं, मेरे पास एक बहुतही बढ़िया विचार हे। इन दिनों वह देख रहे थे, कई कंपनियां जो कि विभिन्न क्षेत्रमें कम करती थी। वह खुदके लिए सॉफ्टवेयर बननेपर कम कर रही थी। जिस कारण उनका अपने व्यापार क्षेत्र पर दुर्लक्ष हो रहा था, ओर उनका नुकसान हो रहा था, और ऐसे ही कई समस्याओं का सामना करनापड़ रहा था।
जिसे देखते हुए शिव अपने साथियों को कहते हैं, भले ही हम अमेरिका में कंप्यूटर हार्डवेयर ना बेच सके, लेकिन हम ऐसी कंपनियों के लिए सॉफ्टवेयर बनाकर बेचेंगे। क्योंकि अपने पास सबसे बढ़िया सॉफ्टवेयर डेवलपर है।
उनका यह आइडिया साथियों को बहुत ज्यादा पसंद आता है, और वह इस विचार पर काम करने लगते है। वह सबसे पहले ऐस कर रही अग्रणी कंपनियों के पास जाते हैं, और उनसे बात करते हैं, वह उनसे कहते हैं आप अपना काम करो हम आपके लिए सॉफ्टवेयर बनाएंग, और आपकी समस्या ही खत्म करेंगे।
वह सबसे पहले सिस्को कंपनी के पास जाते है। और उनसे ऑर्डर लेते हैं। इतनी बड़ी कंपनी से ऑर्डर मिलने की बात सुनकर कहीं और कंपनियां भी उन्हें आर्डर देते हैं। और इसी तरह HCL comapny आईटी हार्डवेयर से आईटी सॉफ्टवेयर में भी काम करने लग जाती है।
आखिरकार उनका यह विचार सफल रहता है। वह कुछ दिनों में ही बहुत सारा पैसा कमा लेते हैं, ओर ICICI से लिए कर्ज को चूकता करते हैं।
अब दुनिया भर में आईटी क्षेत्र में प्रतियोगिता बढ़ रही थी लेकिन क्योंकि वह इस व्यवसाय में पहले से ही थे जिस कारण उनका जरासा भी नुकसान नहीं होता है।
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे की उनके पास सबसे बढ़िया सॉफ्टवेयर डेवलपर है। माइक्रोसॉफ्ट कंपनी जितने भारतीयों को नौकरी देती है, उससे कहीं ज्यादा HCL अकेले कुल 17000 अमेरिकी लोगों को नौकरियां देती है।
शिव नाडर एक महान उद्यमी होने के साथी ही समाज सेवा करने में भी विश्वास रखते हैं। जिस कारण वह 1994 में शिव नादर फाउंडेशन की स्थापन करते हैं। ओर उच्च पढ़ाई मैं विद्यार्थियों को मदद करने के लिए साल 1996 में वह चेन्नई में उनके पिता शिवसुब्रमणीय नाडर के नाम पर इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना करते हैं, और ऐसे ही कई ओर अन्य चीज भी करते हैं
भारत मे नोकिया के सफलता के पीछे का राज
जैसे कि हमने पहले भी जाना है वह हमेशा आगे के बारे में सोचा करते थे। इसी दौरान उन्हें टेलीकॉम क्षेत्र में अवसर दिखाई देता है।
इसके बाद वह टेलीकॉम के क्षेत्र में भी व्यवसाय का विस्तार करना चाहते थे। जिसके लिए वह सिंगापुर की कंपनी सिंगटेल से साझेदारी करते हैं, और भारत सरकार को टेलीकॉम के लाइसेंस के लिए निवेदन देते है।
लेकिन इसी दौरान सिंगटेल के CEO को चीन में एक अच्छा अवसर दिखाई देता है। जिस कारण वह HCL के साथ अपने साझेदारी तोड़ देते हैं। इस दौरान शिव उन्हें बहुत मानने की कोशिश करते हैं। लेकिन वहां मन कर देते हैं।
जिस कारण भारत सरकार भी उन्हें टेलीकॉम क्षेत्र में काम करने के लिए, लाइसेंस देने के लिए मना कर देती है। लेकिन तभी वह सोचते हैं कि टेलीकॉम क्षेत्र में मोबाइल की आवश्यकतातो होती है।
जिसके बाद वह मोबाइल फोन के निर्माता कंपनियों के साथ बात करने लगते हे। इसी दौरान वह फिनलैंड की नोकिया (Nokia) कंपनी से मिलकर बात करते है।
यह बात उस समय कि है जब नोकिया को भारत में कोई व्यक्ति जनता तक नहीं था। वह नोकिया कंपनी से बात करते कि हम साथ मिलकर भारत में मोबाइल फोन बेचेंगे। लेकिन शुरुआत में नोकिया कंपनी उनके इस प्रस्ताव को मना कर देती है।
लेकिन वह उन्हें HCL के भारत में एक क्षमता के बारे में बताते हैं ओर उन्हें यह भी समझाते है, अगर आप अकेले कोशिश करोगे तो आपको भारत में सफल होने के लिए कई साल लग जाएंगे। लेकिन हम भारतीय बाजार में पहले से ही स्थाई है, जिस कारण आप हमारे साथ मिलकर तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।
उनकी यह बाते समझकर नोकिया कंपनी कल के साथ काम करने के लिए राजी हो जाती है।
इसके बाद नोकिया कल के साथ मिलकर भारत में मोबाइल बेचने लगती है, और वह बहुत ही ज्यादा सफल भी रहती है। उसे दौरान उनका भारतीय बाजार में कुल 42% हिस्सेदारी थी। पर्दे के पीछे रहते हुए HCL ने साल 2000 से लेकर 2005 तक कुल 8 हजार करोड़ रुपए की कमाई की। इस सबसे आपको पता तो चली गया होगा कि नोकिया के भारत में सफलता के पीछे HCL का कितना बड़ा हाथ है।
2006 से यह सिलसिला शुरू होता है। जब कई चीनी कंपनिया सस्ते में लैपटॉप और अन्य चीज जो की HCL बेच रही थी, उसको बहुत ही ज्यादा सस्ते दामों पर बेच रही थी। जिस कारन HCL का बहुत ही ज्यादा नुकसान हो रहा था।
इसके बाद उन्होंने अपना ऐतिहासिक कदम रखा। उन्होंने अपने छोटे-मोटे ग्राहकों पर ध्यान देना छोड़ दिया। उन्होंने अपना संपूर्ण ध्यान उन 20%ग्राहकों पर केंद्रित करना शुरू कर दिया जो उन्हें 80% मुनाफा कमा कर देते हैं। और बाकी 80% ग्राहकों पर कम ध्यान देने लगे।
यह बात साल 2008 की है, जब सभी कंपनियों का नुकसान हो रहा था। लेकिन उनके इसी ऐतिहासिक कदम के कारण ही कंपनी और भी तेजी के साथ आगे बढ़ रही थी। साल 2009 में कल कंपनी में 34% की बढ़त देखी गई।
यह बात जुलाई 2020 की है, जब नादर ने अपनी बेटी रोशनी नादर चेयरविमेन को पद सौंप दिया,जिसके बाद भारतीय IT कंपनी की पहली महिला अध्यक्ष बनीं।
जुलाई 2021 में, नादर ने एचसीएल टेक्नोलॉजीज के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद से भी इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह एचसीएल टेक के सीईओ सी विजयकुमार ने पांच साल के कार्यकाल के लिए कार्यभार संभाला।
The great achievements
आईटी मैन ऑफ द ईयर: 1995 में, डेटाक्वेस्ट ने नादर को आईटी मैन ऑफ द ईयर नामित किया।
यह बात साल 2008 की है जब शिव नादर जी को भारत सरकार उनके आईटी क्षेत्र में इतने बड़े योगदान को देखते हुए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित करती हैं।
आज के समय HCL भारत के साथ ही दुनिया के अग्रणी आईटी कंपनी में से एक आती है।
फोर्ब्स के हिसाब से आज के समय शिव नादर के पास $35 बिलियन यानी भारतीय रुपए में 3 लाख करोड़ रुपए के मालिक है। जो कि उन्हें भारत के तीसरे सबसे दौलतमंद व्यक्ति बनती हैं।
कंक्लुजन:
इस जीवनी में हमने जाना की शिव नाडर ने किस तरह अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने एचसीएल टेक्नोलॉजीज की स्थापनाकी। और ऐसे ही वह सफल होते गए।
वहां कभी ना रुकने वाले व्यक्ति है। हमें उनका यह सफर जितना आसान लगता है वह इतना आसान भी नहीं रहा इस दौरान उन्होंने कई बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना किया। और कभी पीछे मुड़े नहीं। उनकी यह कहानी सचमुच बहुतही ज्यादा प्रेरणा देती है।
हर वह व्यक्ति जो अपने जीवन में बहुत ही ज्यादा सफल होना चाहता है उन्हें एक बार उनकी जीवनी जरूर पढ़नी चाहिए। धन्यवाद
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