विजय संकेश्वर की जीवनी: ट्रक ड्राइवर से अरबपति तक का सफर

Vijay Sankeshwar Biography – Founder of VRL Group, Transport King of India
विजय संकेश्वर – एक ट्रक ड्राइवर के बेटे से भारत के ट्रांसपोर्ट किंग बनने की प्रेरणादायक यात्रा।


 

🚚 विजय संकेश्वर: एक ट्रक से भारत की सबसे बड़ी लॉजिस्टिक कंपनी तक का सफर

भारत की सड़कों पर दौड़ते ट्रक, बसें और अनगिनत वाहन हमें रोज़ दिखाई देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन वाहनों के पीछे कितनी मेहनत, कितना संघर्ष और कितनी बड़ी सोच छुपी होती है?
यह कहानी है विजय संकेश्वर जी की – उस शख्स की, जिसने सिर्फ़ एक ट्रक से शुरुआत की थी और आज भारत की सबसे बड़ी लॉजिस्टिक कंपनी VRL Logistics Ltd. खड़ी कर दी।

उनकी यह यात्रा हमें सिखाती है कि कोई भी सपना कितना भी असंभव क्यों न लगे, अगर इंसान में हिम्मत, धैर्य और मेहनत करने की लगन हो, तो वह सपना सच होकर दिखता है।


🌱 बचपन और शुरुआती जिंदगी

विजय संकेश्वर जी का जन्म साल 1950 में कर्नाटक के बेतमुरी नामक गांव में हुआ।
उनका परिवार बहुत बड़ा तो नहीं था, लेकिन मेहनती जरूर था। उनके पिता बसवन्नप्पा संकेश्वर का छोटा सा प्रिंटिंग प्रेस था, जो आज संकेश्वर प्रिंटिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता है।

उस समय यह प्रेस स्थानीय विश्वविद्यालय – कर्नाटक विद्यापीठ – के लिए जर्नल, किताबें और नोट्स छापा करता था।

बचपन से ही विजय संकेश्वर जी अपने पिता की मेहनत और संघर्ष देखते रहे।
इसी माहौल ने उनके भीतर भी मेहनत और कुछ बड़ा करने की आग जलाई।

16 साल की उम्र में उन्होंने अपने पारिवारिक व्यवसाय को नज़दीक से देखना शुरू किया।
वह सिर्फ काम ही नहीं देखते थे, बल्कि सोचते रहते थे कि इसे और कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।

जब वे 19 साल के हुए तो उन्होंने देखा कि प्रिंटिंग प्रेस पुराने ढर्रे पर चल रहा है और उसकी कार्यक्षमता बहुत कम है।
उन्होंने सोचा – “अगर मैं इसे बढ़ाना चाहता हूँ, तो मुझे नई तकनीक लानी होगी।”

👉 उन्होंने साहसिक कदम उठाते हुए डेढ़ लाख रुपये की मशीन खरीदी।
यह बहुत बड़ा रिस्क था, लेकिन इसी से कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली।
उत्पादन बढ़ा, काम तेजी से होने लगा और प्रेस अच्छा मुनाफा देने लगा।

लेकिन विजय का दिल अब भी बेचैन था। उन्हें लगता था कि जिंदगी सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है।
उनके भीतर हमेशा कुछ बड़ा करने की चाहत थी।


🚛 ट्रांसपोर्ट बिजनेस की शुरुआत

प्रिंटिंग प्रेस चलाते समय विजय को अक्सर ट्रांसपोर्ट की समस्या का सामना करना पड़ता था।
कभी समय पर गाड़ी नहीं मिलती, तो कभी माल देर से पहुंचता।

उन्होंने महसूस किया कि उस समय भरोसेमंद ट्रांसपोर्टर बहुत कम थे।
यहीं से उनके मन में बिजनेस का नया आइडिया आया।

लेकिन यह कदम आसान नहीं था।
उस समय लोग कहते थे –
"यह काम बहुत मुश्किल है, इसमें टिक पाना लगभग नामुमकिन है।"

फिर भी विजय ने हार नहीं मानी।
उन्होंने करीब तीन से चार साल तक रिसर्च की।
हर पहलू को समझा, फिर 1975 में ठान लिया कि अब वह ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में उतरेंगे।

समस्या सिर्फ एक थी – पैसे की।
वह अपने पिता के पास मदद मांगने गए, लेकिन उनके पिताजी ने साफ इंकार कर दिया।

फिर उन्होंने अपने दोस्तों से 2-2.5 लाख रुपये का कर्ज लिया और एक ट्रक खरीदा।
यहीं से उनकी असली यात्रा शुरू हुई।

शुरुआत में वह खुद ही ट्रक चलाते थे।
वह ग्राहकों को कम दाम में अच्छी और भरोसेमंद सेवा देने लगे।
लेकिन शुरुआत हमेशा आसान नहीं होती।

कम कमीशन और ज्यादा खर्चे की वजह से उन्हें भारी नुकसान भी उठाना पड़ा।
कई बार हालात ऐसे हुए कि लोग सोचते थे कि अब विजय पीछे हट जाएंगे।
लेकिन उन्होंने ठान लिया था –
"चाहे कितना भी नुकसान हो, मैं पीछे नहीं हटूँगा।"


🏢 VRL की नींव

1978 में विजय हुबली आकर बस गए।
यहां उन्होंने तीन और ट्रक खरीदे और व्यवसाय को धीरे-धीरे बढ़ाने लगे।

1983 में उन्होंने अपनी कंपनी को आधिकारिक रूप से दर्ज करवाया –
विजयानंद रोडलाइन्स प्राइवेट लिमिटेड (VRL)

उनकी कंपनी की खासियत थी –
✔ समय पर डिलीवरी
✔ भरोसेमंद सर्विस
✔ किफायती दाम

धीरे-धीरे उनका नाम फैलने लगा।
ग्राहकों को उनका काम पसंद आने लगा और कारोबार बढ़ता गया।

साल 1990 तक उनके पास 117 ट्रक थे और कारोबार 4 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो गया।
इसके बाद उन्होंने कर्नाटक से बाहर भी सेवाएं देना शुरू कर दिया।

1996 में उन्होंने चार बसें खरीदीं और बेंगलुरु से हुबली के बीच बस सर्विस शुरू की।
लोगों को उनकी बसें बहुत पसंद आईं क्योंकि वे आरामदायक और समय पर चलती थीं।


⚖️ राजनीति में कदम

व्यवसाय में सफलता पाने के बाद विजय संकेश्वर राजनीति की ओर भी बढ़े।
उन्होंने 1993 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सदस्यता ली।

1996 में उन्होंने उत्तर धरवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
इसके बाद उन्होंने लगातार तीन बार चुनाव जीते और सांसद बने।

उन्होंने केंद्र में भूतल मंत्री का पद भी संभाला।
बाद में उन्होंने भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई और आगे चलकर कर्नाटक जनता पक्ष से भी जुड़े।

हालाँकि राजनीति उनकी प्राथमिकता नहीं थी, लेकिन उन्होंने इसे समाज सेवा का साधन बनाया।


📰 मीडिया जगत में कदम

विजय संकेश्वर ने बिजनेस और राजनीति के साथ-साथ मीडिया जगत में भी कदम रखा।
उन्होंने विजय कर्नाटका नाम से अख़बार शुरू किया।

यह अख़बार कर्नाटक में बहुत लोकप्रिय हुआ और 2007 में इसे टाइम्स ऑफ इंडिया ने खरीद लिया।

लेकिन विजय रुके नहीं।
2012 में उन्होंने विजया वाहिनी नाम से दूसरा अख़बार लॉन्च किया।
आज यह कर्नाटक का नंबर वन अख़बार है, जिसकी रोज़ 8 लाख से भी ज्यादा कॉपियाँ बिकती हैं।


🚀 VRL का सुनहरा सफर

2006 में उनके बेटे आनंद संकेश्वर कंपनी से जुड़े।
उन्होंने कंपनी में आधुनिक तकनीक और निवेशकों को जोड़ा।

2007 में कंपनी का नाम बदलकर VRL Logistics Pvt. Ltd. कर दिया गया।
व्यवसाय तेजी से बढ़ता गया और 2015 में कंपनी ने अपना IPO लॉन्च किया, जो बहुत सफल रहा।

2019 में विजय संकेश्वर को राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।
यह उनके संघर्ष और सफलता की आधिकारिक पहचान थी।

आज VRL Logistics के पास 5000 से भी ज्यादा ट्रक हैं और कंपनी की वैल्यू 50,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है।

2022 में उनके जीवन पर बनी फिल्म “विजयानंद” रिलीज़ हुई, जिसने उनके संघर्ष और सफलता की कहानी को आम लोगों तक पहुंचाया।


🌟 निष्कर्ष

विजय संकेश्वर की कहानी यह सिखाती है कि –
👉 छोटी शुरुआत कोई मायने नहीं रखती,
👉 असली मायने रखता है इंसान का जुनून और मेहनत।

उन्होंने एक ट्रक से शुरुआत की और आज हजारों ट्रकों के मालिक बन गए।
उनका जीवन हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो छोटे सपनों से बड़े मुकाम तक पहुंचना चाहता है।


ℹ️ About Us

हम आपके लिए ऐसे लोगों की कहानियाँ लाते हैं जिन्होंने अपने दम पर साम्राज्य खड़ा किया।
इनसे आप सीख सकते हैं कि कैसे मेहनत, जुनून और सही सोच से आप भी अपने सपनों को हकीकत बना सकते हैं।

साथ ही हम सफल कंपनियों की केस स्टडी भी लाते हैं, ताकि आप जान सकें कि बड़े बिजनेस कैसे खड़े होते हैं और उन रणनीतियों को अपने जीवन या व्यवसाय में लागू कर सकें।





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