“कुछ लोग हालात से हार मान लेते हैं, और कुछ हालात को हराने का जज़्बा पैदा कर लेते हैं।”
गौतम अदाणी की कहानी कुछ ऐसी ही है। एक साधारण से परिवार में जन्मा एक लड़का, जिसने गरीबी के बीच सपने देखे, संघर्षों को गले लगाया, बार-बार गिरे लेकिन हर बार पहले से ज़्यादा मज़बूती से उठा।
और फिर एक दिन, वो दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिना जाने लगा। लेकिन इस ऊंचाई तक पहुँचने का सफर आसान नहीं था।
ये कहानी सिर्फ एक बिज़नेसमैन की नहीं है, ये कहानी है एक ऐसे इंसान की जिसने अपनी मेहनत और दूरदृष्टि से नामुमकिन को मुमकिन बना दिया।
🧒 शुरुआती जीवन: एक साधारण घर, असाधारण सपने (1962–1980)
गौतम शांतीलाल अदाणी का जन्म 24 जून 1962 को गुजरात के अहमदाबाद शहर में हुआ था। उनका परिवार मूल रूप से थराड, बनासकांठा जिले का था, लेकिन काम के सिलसिले में वे अहमदाबाद आ बसे थे।
उनके पिता शांतीलाल अदाणी एक साधारण कपड़े के व्यापारी थे। माँ शांता बेन एक गृहिणी थीं। कुल सात भाई-बहनों वाले इस मध्यमवर्गीय परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
गौतम का बचपन अहमदाबाद के सेठ चिमनलाल नागिंदास विद्यालय में बीता। पढ़ाई में उनका मन ज्यादा नहीं लगता था, लेकिन उनमें बचपन से ही व्यापार की समझ और तेज़ नजर थी।
बार-बार उनके शिक्षक और रिश्तेदार कहते कि ये लड़का पढ़ाई में भले कमजोर हो, लेकिन जीवन में बड़ा करेगा। 12वीं के बाद उन्होंने गुजरात यूनिवर्सिटी में कॉमर्स की पढ़ाई शुरू की, लेकिन दूसरे साल ही पढ़ाई छोड़ दी।
उनकी पढ़ाई छोड़ने का फैसला आसान नहीं था, लेकिन गौतम को मालूम था कि उनकी राह क्लासरूम से नहीं, बल्कि व्यापार की दुनिया से होकर गुजरेगी।
इस समय परिवार की आर्थिक स्थिति भी कुछ खास नहीं थी, इसलिए जल्दी काम शुरू करना जरूरी था।
🚶 संघर्ष की शुरुआत: मुंबई की गलियों से व्यापार की राह (1980–1985)
1980 का दशक भारत में आर्थिक बदलावों का दौर था। 1978 में, 16 साल की उम्र में, गौतम अपने बड़े भाई के बुलावे पर मुंबई आ गए। भाई वहां प्लास्टिक यूनिट चलाते थे।
यहाँ आकर गौतम ने हीरा छंटाई और बिक्री का काम सीखा। उनका पहला वेतन था मात्र 300 रुपये।
मुंबई की गलियों में घूमते हुए, गौतम ने हीरे का व्यापार करीब से देखा। कुछ ही सालों में उन्होंने इसमें महारत हासिल कर ली। लेकिन हीरा कारोबार उनका आखिरी मुकाम नहीं था। वो कुछ बड़ा करना चाहते थे।
📦 व्यापार की ओर पहला कदम: पीवीसी आयात और लाइसेंस की लड़ाई (1985–1988)
1981 में उनका पहला बड़ा मोड़ आया जब उनके भाई ने अहमदाबाद में एक प्लास्टिक यूनिट शुरू की और गौतम को बुला लिया।
यहां से उनके पीवीसी (पॉली विनाइल क्लोराइड) के इम्पोर्ट बिज़नेस की शुरुआत हुई। उस समय भारत में लाइसेंस राज था, और इम्पोर्ट करना बहुत मुश्किल काम होता था। लेकिन गौतम ने इसमें भी अवसर देखा।
1985 तक उन्होंने पीवीसी का आयात शुरू कर दिया और व्यापार में तेजी से मुनाफा होने लगा। इस दौरान उन्होंने वैश्विक बाज़ारों को समझना शुरू किया।
लेकिन सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट 1988 में आया, जब उन्होंने 'Adani Exports' नाम की कंपनी शुरू की, जो बाद में Adani Enterprises बनी।
🚢 विस्तार की लहर: कमोडिटीज से पोर्ट तक (1988–2000)
यह कंपनी शुरू में एग्रो प्रोडक्ट्स और पावर कमोडिटीज़ का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट करती थी। गौतम का विज़न साफ़ था: भारत को व्यापार में वैश्विक शक्ति बनाना।
उन्होंने धीरे-धीरे कोयला, तेल, और अन्य कमोडिटी व्यापारों में कदम रखा।
1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण हुआ। यह गौतम के लिए सुनहरा मौका था। उन्होंने अपनी पकड़ तेजी से बढ़ाई और इन्फ्रास्ट्रक्चर, पावर और पोर्ट जैसे क्षेत्रों में निवेश करना शुरू कर दिया।
1995 में उन्होंने मुंद्रा पोर्ट की नींव रखी — जो आज भारत का सबसे बड़ा प्राइवेट पोर्ट है। इसके लिए उन्हें कई सरकारी-अनुमति, लोकल विरोध और फंडिंग की समस्याओं से जूझना पड़ा।
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। दिन-रात की मेहनत से उन्होंने इस प्रोजेक्ट को सफल बनाया।
इसी दौरान उन्होंने Priti Adani से विवाह किया। उनकी पत्नी भी एक शिक्षित और प्रेरणादायक महिला हैं, जो बाद में Adani Foundation की चेयरपर्सन बनीं।
⚠️ चुनौतियाँ और झटके: अपहरण और आतंक से सामना (1999–2008)
1999 में गौतम अदाणी को एक बड़ा झटका लगा जब उनका अपहरण कर लिया गया। अपहरणकर्ताओं ने फिरौती मांगी, और 18 घंटे तक गौतम उनके कब्जे में रहे।
लेकिन वे सुरक्षित वापस लौटे और इस हादसे ने उन्हें और अधिक मजबूत बना दिया।
2008 में मुंबई के ताज होटल में हुए आतंकी हमले के दौरान भी गौतम अदाणी वहीं थे। उन्होंने अपनी जान बाल-बाल बचाई।
इन दोनों घटनाओं ने उन्हें यह अहसास कराया कि ज़िंदगी कितनी अनमोल है और उन्होंने हर पल को गिन-गिनकर जीना शुरू किया।
🔋 नई ऊर्जा, नई ऊँचाई: ग्रीन एनर्जी और वैश्विक विस्तार (2010–2022)
2010 के बाद अदाणी समूह ने ऊर्जा, ग्रीन एनर्जी, डिफेंस, डेटा सेंटर, एयरपोर्ट्स, सीमेंट और ट्रांसपोर्टेशन में विशाल निवेश किया।
उन्होंने कोल माइंस ऑस्ट्रेलिया में खरीदी, भारत में थर्मल प्लांट्स बनाए और देश के कई एयरपोर्ट्स का संचालन अपने हाथों में ले लिया।
2020 के बाद, जब दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थी, अदाणी समूह ने ग्रीन एनर्जी में जबरदस्त निवेश शुरू किया। उनका मानना था कि भविष्य सस्टेनेबल एनर्जी का है।
उन्होंने Adani Green को तेजी से विस्तार दिया और सौर ऊर्जा में भारत का सबसे बड़ा नेटवर्क बना दिया।
2022 में गौतम अदाणी एशिया के सबसे अमीर आदमी बन गए। कुछ समय के लिए वो एलन मस्क के बाद दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति भी रहे।
ये वही गौतम अदाणी थे जिन्होंने अपने जीवन की शुरुआत 300 रुपये की नौकरी से की थी।
📉 आलोचना और पुनरुत्थान: हिंडनबर्ग रिपोर्ट और नई राह (2023)
लेकिन सफलता के साथ आलोचनाएं भी आईं। Hindenburg Report ने उनकी कंपनियों पर आरोप लगाए, जिससे उनके शेयर गिर गए।
लेकिन गौतम अदाणी ने धैर्य से काम लिया और पारदर्शिता के साथ जवाब दिए। धीरे-धीरे विश्वास बहाल हुआ और उनका साम्राज्य फिर से उभरता गया।
🏢 आज का अदाणी साम्राज्य: भारत की रीढ़
आज अदाणी समूह भारत के सबसे बड़े कॉर्पोरेट समूहों में से एक है। हजारों लोगों को रोज़गार देता है, इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर ऊर्जा तक भारत को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहा है।
🏁 निष्कर्ष: एक प्रेरणा, एक प्रतीक
गौतम अदाणी की कहानी सिर्फ बिज़नेस की नहीं, बल्कि जज़्बे, साहस, दूरदृष्टि और मेहनत की कहानी है। उन्होंने दिखाया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी ऊँचाई पाई जा सकती है।
उनकी ज़िंदगी हमें सिखाती है कि कोई भी सपना छोटा नहीं होता और कोई भी शुरुआत बेकार नहीं होती। ज़रूरत होती है तो बस लगातार मेहनत, स्पष्ट दृष्टि और आत्मविश्वास की।
आज अगर कोई लड़का छोटे शहर में बैठकर बड़ा सपना देखता है, तो उसके लिए गौतम अदाणी एक जीवंत उदाहरण हैं कि कुछ भी मुमकिन है।
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