Cyrus Poonawalla biography Hindi |
“कभी सोचा है एक ऐसा आदमी, जिसने घोड़ों की दौड़ से शुरुआत की और दुनिया को बीमारियों से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार दिया?”
यह कहानी है Cyrus Poonawalla की — उस भारतीय उद्योगपति की, जिसे पूरी दुनिया “Vaccine King of India” के नाम से जानती है। उन्होंने एक छोटे-से फार्म से शुरुआत की और आज Serum Institute of India को दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी में बदल दिया।
उनकी यह यात्रा सिर्फ एक बिज़नेस मैन की सफलता की दास्तान नहीं है, बल्कि यह उस इंसान की कहानी है जिसने लाखों-करोड़ों जिंदगियों को बचाने का काम किया। घोड़ों के अस्तबल से लेकर विश्व के सबसे अमीर और प्रभावशाली उद्यमियों की लिस्ट में शामिल होने तक का यह सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं।
क्या आप जानना चाहेंगे कि आखिर कैसे Cyrus Poonawalla ने अपनी सोच और मेहनत से दुनिया को बदल दिया? तो चलिए मेरे साथ....
🧒 बचपन - शिक्षा के दिन
उनका जन्म साल 1941 में पुणे के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। जो की पूनावाला स्टड फार्म के मालिक थे। उनके पिता घोड़े का व्यापार किया करते थे, जिस कारण उनके पास बहुत सारी जमीन हुआ करती थी।
क्योंकि उस समय अमीर और बड़े-बड़े लोग घोड़े की रेस में बहुत सारा पैसा लगाया करते थे, जिस कारण साथ ही में उनके पिता घोड़े की रेस भी आर्गेनाइज करते थे।
उन्हें उनके पिता ने कभी भी पैसों की कमी महसूस नहीं होने दी। जिस कारण वह बड़े अच्छी तरह से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर पाए। जीस के बाद उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई "ब्रिहम महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स" से पूरी की ।
♟️ नए प्रयत्न - व्यावसायिक जीवन की शुरुआत
बीस साल की उम्र में अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह अपने पिता के स्टड फार्म के लिए काम करने लगते हैं।
इस दौरान उनके फार्म में जब भी किसी घोड़े की उम्र ज्यादा हो जाती थी, या फिर उसकी रेस में दौड़ने की क्षमता खत्म हो जाती थी, तब वह उसे घोड़े को भारत सरकार के हफ़कीन इंस्टिट्यूट (Haffkin institute) को दान में दिया करती थे।
बाद में वहां के डॉक्टर और साइंटिस्ट उसे घोड़े के खून से सीरम निकालकर कई प्रकार के वैक्सीन और दवाइयां बनाया करती थे। जिस दौरान वहां पर उनके कई दोस्त भी बन जाते हैं।
शुरुआत से ही उनकी सोच बहुत ही ऊंची होने के कारण, वह अपने पिता के स्टड फार्म को और भी उच्चे स्तर पर ले जाने के लिए काम कर रहे थे। लेकिन तब तक भारत में घोड़े की रेस का जमाना खत्म सा हो गया था, और वह यह बात जल्द ही समझ जाती है।
बाद वह भारत में घोड़े के रेस के सतही उनके व्यवसाय का कोई भी भविष्य ना होने का समझ जाते हैं। इन्हीं सब की वजह से अब वह कोई दूसरा व्यवसाय करना चाहते थे।
जिस दौरान वह अपने कुछ कॉलेज के दोस्तों के साथ मिलकर कार में मोडिफिकेशन करके, अमीर व्यक्तियों को बेचने का व्यवसाय शुरू करते हैं। लेकिन इस व्यवसाय को जितने पैसे की आवश्यकता थी, उतने पैसे ना होने, और अन्य कुछ कारणों की वजह से उनका यह व्यवसाय जल्द ही बंद हो जाता है।
वह इन सब बातों से आगे निकलना चाहते थे। जिस कारण वह ऐसे व्यवसाय के बारे में सोचने लगते हैं, जिससे कि लोगों की मदद हो सके।
🪜 हादसे से शुरुआत
एक दिन की बात है। जब वह अपने स्टार्ट फार्म पर आते हैं जहां पर वह देखते हैं कि उनका एक बड़ी शानदार घोड़ा जमीन पर पड़ा हुआ है। देखने पर पता चलता है कि उसको किसी जहरीले सांप ने काट लिया है।
जिसे बचाने के लिए वह हाफ़किन इंस्टिट्यूट में कॉल करते हैं, और उन्हें कैसे भी करके अपने घोड़े को बचाने के लिए कहते हैं। लेकिन वहां के डॉक्टर उनके घोड़े को बचाने के लिए असमर्थ होने की बात कहते हैं। जीसके कुछ वक्त बाद उनका घोड़ा दम तोड़ देता है।
वह अपने खास और प्रिया घोड़े के निधन से बहुत दुखी होते हैं, और सतही में उनके हबकिन इंस्टिट्यूट को डेढ़ सौ से भी अधिक घोड़े को दान में देने के बावजूद उनसे जरा सी भी मदद ना मिलने के कारण उन्हें बुरा भी लगता है।
इसी दौरान उन्हें उनके हैफ़किन इंस्टिट्यूट में काम कर रहे दोस्त से वैक्सीन की बढ़ती मांग और उसके बहुत ही ज्यादा कीमतों के बारे में पता चलता है।
यह बड़े आश्चर्य की बात होती है, कि उनके पास इस क्षेत्र की जरा से भी जानकारी न होने के बावजूद, सिर्फ उनके पास बहुत सारे घोड़े होने के कारण उनसे आसानी से सीरम प्राप्त करके खुद से सस्ते वैक्सीन बनाने का विचार उन्हें आता है।
जिससे कि हर व्यक्ति को कम कीमत पर वैक्सीन मिल सके। वैक्सीन बनाने की और इस क्षेत्र की जरा भी जानकारी ना होने के कारण सबसे पहले वह इस बारे में जानकारी जुटाना लगते हैं।
साल 1966 आते-आते वह उनके व्यवसाय के लिए आवश्यक उनकी जानकारी जुटा लेते हैं।जिसके बाद वह हाफकिन इंस्टिट्यूट से 10 डॉक्टर और साइंटिस्ट को अपनी कंपनी के लिए काम करने के लिए आमंत्रित करते हैं जो कि वह स्वीकार करते हैं।
जिसके बाद वह साल 1966 में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया serum institute of india (SII) की नीव रखते हैं, और इसी तरह एक हादसे से इस कंपनी की शुरुआत होती है।
✨ सफलता - मेहनत का फल
व्यवसाय के शुरुआती दिनों से ही वह अपने कंपनी के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे थे। इसके फल स्वरुप उन्होंने जल्दी ही एंटी टिटनेस वैक्सीन को विकसित कर लिया।
जिसकी उन दिनों भारत चीन युद्ध और सरकारी दवाखाना में मुफ्त टीकाकरण अभियान के कारण बहुत ज्यादा मांग चल रही थी। जिस कारण भारत सरकार उन्हें मदद करती है, और बहुत ज्यादा वैक्सीन के लिए आर्डर भी देती है।
अब उनका यह व्यवसाय बड़ी तेजी के साथ चल पड़ता था।
इसके बाद वह और भी कई प्रकार के वैक्सीन को विकसित करने में लग जाते हैं, जिसके लिए वह अपने डॉक्टर और साइंटिस्ट के टीम का और भी विस्तार करते हैं।
इसके बाद वह खसरा (measlels), टीबी,बच्चों को लगने वाली कई प्रकारकी वैक्सीन, सांप काटने पर लगने वाले एंटी स्नेक वेनम और ऐसे ही कई प्रकार के वैक्सीन को विकसित कर लेते हैं। इसके कुछ साल बाद वह पोलियो और रेबीज के वैक्सीन को भी विकसित करते हैं।
यह बात साल 1972 की है। जब उनको को पता चलता है की मौखिक टीकाकरण जिसमें की टीका मुंह से लिया जाता है और वह आसान भी होता है। जिसे करने का अधिकार सिर्फ कुछ विकसित देशों ने अपने पास रखा है। बाकी सभी देशों को इंजेक्शन के मदद से ही टीकाकरण पढ़ने करना पड़ता है। जिसमें से भारत भी एक देश था।
जिसके बाद वह भारत में मौखिक टीकाकरण के अनुमति प्राप्त करने के लिए WHO और US को पत्र लिखने लगते हैं, और भारत में मौखिक वैक्सीनेशन की अनुमति प्राप्त करने के लिए कई बार की कोशिश करते हैं। दो साल के उनके अथक प्रयत्नों के बाद यानी कि साल 1974 में WHO भारत को मौखिक टीकाकरण के लिए अनुमति दे देता है।
आज के समय भारत में उनके ही कारण पोलियो का टीकाकरण मुंह से लिया जाता है, नहीं तो हमें पोलियो का टीका इंजेक्शन के मदद से लेना पड़ता था।
उनके शुरुआत से ही दुनिया को सबसे सस्ते और किफायती वेक्सीन दिलाने की सोच के कारण, उन्होंने दुनिया में सबसे सस्ते वैक्सीन का निर्माण किया, जिसके लिए उन्होंने अपनी कंपनी का लाभ सबसे कम रखा।
बावजूद इसके उन्होंने अपने वैक्सीन की गुणवत्ता पर जरा सा भी असर पढ़ने नहीं दिया, और दुनिया में सबसे किफायती और अच्छे वैक्सीन का निर्माण किया। जिसकी जरूरत पूरी दुनिया में थी। जिस कारण WHO उन्हें 1994 में अपने वैक्सीन कि निर्यात दुनिया भर में करने की अनुमति देता है।
इसके बाद उन्हें विदेशों से बड़े-बड़े ऑर्डर मिलने लगते हैं। साल 1998 आते-आते वह दुनिया के 100 से भी अधिक देशों में अपने वैक्सीन का निर्यात करने लगते हैं, और साल 2000 आते आते दुनिया के बारे में हर दो में से एक बच्चे को उनके द्वारा निर्मित वैक्सीन लगायी जा रहा थी।
यही हाल कोरोना के वैक्सीनेशन के वक्त भी बना रहा। जब उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर, दुनिया की सबसे पहले कोरोना वायरस के खिलाफ काम करने वाली, कोविशील्ड/ एस्ट्रेजनेका (COVISHIELD) वैक्सीन का निर्माण किया था।
इस वक्त वह बहुत ही बड़ा रिस्क लेकर WHO से वैक्सीन के अनुमति मिलने के पहले ही वैक्सीन का निर्माण शुरू कर देते हैं। जिससे की अनुमति मिलने पर वह दुनिया में सबसे आगे रहे। लेकिन अनुमति न मिलने पर उनका पूरा स्टॉक पढ़ा रह सकता था,और उनके करोड़ों का नुकसान हो सकता था। लेकिन फिर भी वह इस रिस्क को लेते हैं।
सितंबर 2020 तक वह 4 - 5 करोड़ करोना वैक्सीन का निर्माण कर लेते हैं। जो की दुनिया भर में कोई भी कर नहीं रहा था, आगे WHO से उन्हें टीकाकरण के लिए अनुमति दे दी जाती है।
जहां पर बाकी कंपनियां अपने वैक्सीन को बड़ी महंगी दम पर बाजार में उतरती है। वही सिरम इंस्टीट्यूट सिर्फ दो डॉलर में अपने वैक्सीन को लांच कर देता है।
किफायती और पहले ही वैक्सीन का निर्माण शुरू करने के कारण उनके वैक्सीन की मांग पूरी दुनिया में बढ़ जाती है, और वह दुनिया भर में सबसे ज्यादा वैक्सीन की बिक्री करते हैं।
सीरम इंस्टिट्यूट के कारण ही भारत में तेजी के साथ कोरोना के खिलाफ टीकाकरण हो पाया और भारत कोरोना मुक्त हो पाया है।
आज के समय वह दुनिया भर में सबसे ज्यादा बच्चों के लिए इस्तेमाल होने वाले वैक्सीन का निर्माण करते हैं।
साल 2014 में भारत को संपूर्ण रूप से पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया। जिसमें साइरस पूनावाला और उनके सिरम इंस्टीट्यूट का बहुत बड़ा योगदान है।
आज के समय सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया भर में 170 से भी अधिक देशों में अपने वैक्सीन का निर्यात करते हैं।
उनके जीवन भर के मेहनत का नतीजा है, कि वह दुनिया के सबसे बड़े कंपनी वैक्सीन निर्माता कंपनी बन पाए है।
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि आज उनके ही बदौलत, दुनिया भर में भारत को वैक्सीन कैपिटल कहा जाता है।
🗽 वैयक्तिक जीवन और समाजसेवा
साइरस पूनावाला जी की विवाह विल्लो पूनावाला जी के साथ हुआ था। जिनका की देहांत साल 2010 में हो गया था। वह अपने पत्नी के मृत्यु के बाद टूट से गए थे। जिनके की याद में उन्होंने आगे चलकर विल्लो पूनावाला फाऊंडेशन की स्थापना की।
जिसके द्वारा उन्होंने कई स्कूलों और अस्पताल खोलकर, कई गरीब लोगों की मदद की है। सतही में वह दुनिया की कई गरीब देश को मुफ्त में कई प्रकार की वैक्सीन प्रोवाइड करते हैं। जो कि अपने आप में बहुत ही बड़ी बात है। और ऐसे ही कई प्रकारके काम वह समाज के लिए करते हैं।
🌳 जीवन की उपलब्धियां
2011 में Cyrus Poonawalla ने भले ही औपचारिक रूप से सक्रिय नेतृत्व से दूरी बना ली हो, लेकिन उनकी उपस्थिति अब भी Serum Institute of India की धड़कन बनी हुई है। उन्होंने अपनी जगह बेटे Adar Poonawalla को सौंपी, लेकिन संस्थान की दिशा और भविष्य की रूपरेखा तय करने में उनकी गहरी समझ आज भी अमूल्य योगदान देती है।
उनके मार्गदर्शन में Serum ने न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में वैक्सीन की आपूर्ति की। खासकर COVID-19 महामारी के दौरान उनकी कंपनी द्वारा तैयार की गई वैक्सीन ने करोड़ों लोगों की जान बचाई। यह वह उपलब्धि है जिसने Cyrus Poonawalla को केवल एक बिज़नेस टायकून ही नहीं, बल्कि मानवता का सच्चा रक्षक साबित किया।
आज की संपत्ति और शानदार जीवन
आज Cyrus Poonawalla को दुनिया “Vaccine King of India” कहती है। उनकी संपत्ति का स्तर इतना ऊँचा है कि वे लगातार भारत के टॉप अमीर व्यक्तियों में गिने जाते हैं। Forbes 2025 के अनुसार उनकी कुल नेटवर्थ लगभग $30 बिलियन (लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये) आंकी गई है। इस संपत्ति ने उन्हें भारत का दूसरा सबसे अमीर शख्स और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में शामिल कर दिया है।
उनका पूनावाला हाउस, पुणे का एक प्रतीक है—जहाँ ऐतिहासिक शानो-शौकत और आधुनिक लक्ज़री का संगम देखने को मिलता है। उनके पास दुनिया भर में फैली हुई लक्ज़री याट्स, प्राइवेट जेट्स और सैकड़ों विंटेज कारों का एक शानदार कलेक्शन है। वे दुनिया के उन गिने-चुने अरबपतियों में से एक हैं, जिनका लाइफस्टाइल खुद एक ब्रांड बन चुका है।
लेकिन इन सबके बावजूद, Cyrus Poonawalla ने कभी भी खुद को केवल ऐश्वर्य तक सीमित नहीं किया। वे शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों में निरंतर योगदान देते रहते हैं। उनके लिए धन का सबसे बड़ा उद्देश्य हमेशा मानवता की सेवा और आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य तैयार करना रहा है।
✨ निष्कर्ष
आज Cyrus Poonawalla की पहचान सिर्फ एक अरबपति उद्योगपति की नहीं है, बल्कि उस इंसान की है जिसने अपनी सोच, मेहनत और विज़न से दुनिया को सुरक्षित बनाया। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि असली सफलता वही है, जिसमें व्यवसायिक बुद्धिमत्ता और मानवीय संवेदनाएँ साथ चलें।
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